*कविता - रावण*
________
________
दम्भ और मद इंसान में, खाली पुतला चौगान में
बुराई भिड़ाई तन में मन में, नकल खड़ी मैदान में
कागज गत्ता राख होता है, किन्तु पाप न मरता है
_नकली रावण जलता है_
_असली रावण हँसता है ।_
बुराई भिड़ाई तन में मन में, नकल खड़ी मैदान में
कागज गत्ता राख होता है, किन्तु पाप न मरता है
_नकली रावण जलता है_
_असली रावण हँसता है ।_
हर साल तमाशा होता है, हर बार निराशा होती है
रावण फिर से जी उठता है, धूमिल आशा होती है
धूम धूम आतिशबाजी से बस मनोंरजन मिलता है
_नकली रावण जलता है_
_असली रावण हँसता है ।_
रावण फिर से जी उठता है, धूमिल आशा होती है
धूम धूम आतिशबाजी से बस मनोंरजन मिलता है
_नकली रावण जलता है_
_असली रावण हँसता है ।_
0 comments:
Post a Comment