Wednesday, 19 October 2016

स्टूडेंट की तरह पीठ पर बैग लिए टेंपो से SP का चार्ज लेने पहुंचे IPS से स्टेनो ने कहा-आप कौन ?*

*स्टूडेंट की तरह पीठ पर बैग लिए टेंपो से SP का चार्ज लेने पहुंचे IPS से स्टेनो ने कहा-आप कौन ?*

खोखली होती ब्यूरोक्रेसी में कुछ युवा IAS-IPS जनता में उम्मीद की किरण जगाते हैं। ऐसे ही यूपी कैडर के एक युवा IPS प्रभाकर चौधरी अपनी स्टाइल से सुर्खियों में हैं।

नई दिल्लीः कम उम्र और दिखने में मासूम। साधारण लिबास। एकदम स्टूडेंट टाइप अंदाज में एक युवक  पीठ पर बैग लटकाए दोपहर करीब ढाई बजे यूपी के कानपुर देहात एसपी के बंगले में दाखिल होता है। स्टेनों के बारे में पूछने पर एक सिपाही हाथ से संबंधित कमरे की तरफ जाने का इशारा कर देता है। युवक ने पहुंचते ही स्टेनो से कहा ..जरा एसपी देहात का सीयूजी नंबर दीजिए। यह सुनते ही  स्टेनो के माथे पर सिलवटें पड़ गईं और बोले आप कौन होते हो सीयूजी सिम लेने वाले। इस पर युवक ने हंसकर कहा-मैं प्रभाकर चौधरी। इतना कहते ही स्टेनो के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं और झट से हाथ ऊपर कर सैल्यूट मारते हुए कहा..ससससररररर... सॉरी सर। हमें अंदाजा न था कि आप इतने सादे अंदाज में चले आएंगे चार्ज लेने। हम तो सोचे थे कि आपके आने की सूचना पर हम गाड़ी भेजकर  रिसीव करेंगे। आपने तो सर सरप्राइज कर दिया।

इस पर आईपीएस ने कहा-हमारा यही अंदाज है। बात हो रही 2010 बैच के आईपीएस प्रभाकर चौधरी की। शासन ने हाल में कुछ आईपीएस अफसरों के ट्रांसफर किए तो प्रभाकर चौधरी को कानपुर देहात का एसपी बनाया गया। उन्होंने कानपुर देहात एसपी का पद संभालने के अपने अनोखे अंदाज से सबको चौंका दिया।

*लखनऊ से रोडवेज बस से आए कानपुर*

आईपीएस प्रभाकर चौधरी का परिवार लखनऊ में रहता है। जब शासन ने कानपुर देहात एसपी का चार्ज लेने का निर्देश दिया तो वे बुधवार को लखनऊ से रोडवेज की बस में बैठकर चल दिए। करीब पौने दो बजे कानपुर रोडवेज पर उतरे और बिना मातहतों को फोन किए ही टेंपो से एसपी बंगले की ओर चल दिए। जब बिना किसी तामझाम के एसपी के सीधे बंगले में पहुंचने की खबर मिली तो सभी सिपाही अलर्ट हो गए।

*परीक्षा लेकर थानेदारों की तैनाती से चर्चा में आ चुके हैं प्रभाकर*

प्रभाकर चौधरी अपने युवापन के चलते पुलिस महकमे में नए प्रयोग भी करने के लिए जाने जाते हैं। देवरिया में बतौर एसपी पोस्टिंग के दौरान उन्होंने जोड़-जुगाड़ की जगह योग्य थानेदारों की तैनाती का सिस्टम तैयार किया। इसके लिए दारोगाओं की परीक्षा ली जाती थी। मेरिट के आधार पर थाने बंटते थे। किसी नेता विधायक या मंत्री की कोई सिफारिश नहीं चलती थी। जिससे थानों से जनता को काफी हद तक न्याय मिलने लगा। 

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