*कविता - रावण*
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दम्भ और मद इंसान में, खाली पुतला चौगान में
बुराई भिड़ाई तन में मन में, नकल खड़ी मैदान में
कागज गत्ता राख होता है, किन्तु पाप न मरता है
_नकली रावण जलता है_
_असली रावण हँसता है ।_
बुराई भिड़ाई तन में मन में, नकल खड़ी मैदान में
कागज गत्ता राख होता है, किन्तु पाप न मरता है
_नकली रावण जलता है_
_असली रावण हँसता है ।_
हर साल तमाशा होता है, हर बार निराशा होती है
रावण फिर से जी उठता है, धूमिल आशा होती है
धूम धूम आतिशबाजी से बस मनोंरजन मिलता है
_नकली रावण जलता है_
_असली रावण हँसता है ।_
रावण फिर से जी उठता है, धूमिल आशा होती है
धूम धूम आतिशबाजी से बस मनोंरजन मिलता है
_नकली रावण जलता है_
_असली रावण हँसता है ।_
बड़ी भीड़ इकट्ठी होती है, रावण दहन करवाने को
विजयादशमी मनाने को, पर्व की रस्म निभाने को
लकड़ी-बल्ली घासफूस का रावण नही अकड़ता है
_नकली रावण जलता है_
_असली रावण हँसता है ।_
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विजयादशमी मनाने को, पर्व की रस्म निभाने को
लकड़ी-बल्ली घासफूस का रावण नही अकड़ता है
_नकली रावण जलता है_
_असली रावण हँसता है ।_
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